पुण्यकर्म
''कर्मफल विधान में ईश्वर का कोई हस्तक्षेप नहीं है और दुःख के रूप में हमारे समक्ष प्रकट होते हैं। कर्मफल विधान 'बोओ और काटो' के सिद्धांत पर आधारित है। हम जैसा बोते हैं वैसा ही काटते हैं। यदि हम जीवन में मधुर फल या सुख प्राप्त करना चाहते हैं तो अपने जीवन में अच्छे, शुभ व पुण्यकर्मों के बीज बोना चाहिए।'' स्वामी विवेकांनद ने भी इस संदर्भ में कितना सटीक कहा है - ''आज तुम सुख या दुःख, जिस भी स्थिति में हो, यह अतीत में तुम्हारे द्वारा किए गए कर्मों का ही परिणाम है और तुम भविष्य में जिस किसी भी स्थिति में होओगे, वो भी तुम्हारे द्वारा वर्तमान में किए जा रहे कर्मों का ही परिणाम होगा।''
"There is no interference of God in the law of action and appears before us in the form of sorrow. Karmafal Vidhan is based on the principle of 'sow and reap'. We reap as we sow. If we want to get sweet fruits or happiness in life, then we should sow the seeds of good, auspicious and virtuous deeds in our life. The situation you are in is the result of your actions in the past and whatever situation you will be in in the future will also be the result of the actions you are doing in the present.
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भारत से समस्त विश्व में विद्या का प्रसार आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सत्यार्थप्रकाश में लिखते हैं कि यह निश्चय है कि जितनी विद्या और मत भूगोल में फैले हैं वे सब आर्यावर्त देश ही से प्रचारित हुए हैं। देखो! एक जैकालियट साहब पेरिस अर्थात फ्रांस देश के निवासी अपनी बाईबिल आफ इण्डिया में लिखते हैं कि सब विद्या...
अश्वमेध यज्ञ महर्षि दयानन्द अश्वमेध के मध्यकालीन रूप से सहमत नहीं थे और न इसे वेद व शतपथ ब्राह्मण के अनुकूल समझते थे। महर्षि ने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में राजप्रजाधर्म में लिखा है कि राष्ट्रपालनमेव क्षत्रियाणाम अश्वमेधाख्यो यज्ञो भवति, नार्श्व हत्वा तदड्गानां होमकरणं चेति अर्थात् राष्ट्र का पालन करना ही क्षत्रियों का अश्वमेध यज्ञ है, घोड़े...