सोचने-समझने की क्षमता
बच्चा बड़ा होता है तो बोलना सीखता है। उसके अंदर तब कुछ जानने की जिज्ञासा होती है और इसी के साथ उसके अंदर मन में तीव्रता से प्रश्न उपजते हैं, वह दिन भर पूछता रहता है कि यह क्या है ? वो क्या है ? ऐसा क्यों है ? हालाँकि उसके अंदर सोचने-समझने की अधिक क्षमता नहीं होती और मिलने वाले उत्तर भी वो ज्यादा ध्यान नहीं देता, बस, सुनता और रटता, याद करता है। धीरे-धीरे जब समय के साथ उसमें समझने की क्षमता विकसित होती है तो वह तर्क करना शुरू करता है, सही-गलत में फरक करना शुरू करता है और यहीं से वह जिंदगी के नए आयामों का स्पर्श करता है, लेकिन प्रश्न करने की उसकी आदत यहाँ भी खतम नहीं होती, वरन प्रश्नों की गहराई बढ़ जाती है।
As the child grows, he learns to speak. Then there is a curiosity in him to know something and at the same time questions arise in him intensely in his mind, he keeps asking all day, what is this? what is that ? Why is this ? Although he does not have much ability to think and understand and does not pay much attention to the answers he gets, just listens and memorizes, remembers. Slowly with time when he develops the ability to understand, he starts reasoning, starts to differentiate between right and wrong and from here he touches new dimensions of life, but his habit of questioning Here also it does not end, but the depth of the questions increases.
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भारत से समस्त विश्व में विद्या का प्रसार आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सत्यार्थप्रकाश में लिखते हैं कि यह निश्चय है कि जितनी विद्या और मत भूगोल में फैले हैं वे सब आर्यावर्त देश ही से प्रचारित हुए हैं। देखो! एक जैकालियट साहब पेरिस अर्थात फ्रांस देश के निवासी अपनी बाईबिल आफ इण्डिया में लिखते हैं कि सब विद्या...
अश्वमेध यज्ञ महर्षि दयानन्द अश्वमेध के मध्यकालीन रूप से सहमत नहीं थे और न इसे वेद व शतपथ ब्राह्मण के अनुकूल समझते थे। महर्षि ने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में राजप्रजाधर्म में लिखा है कि राष्ट्रपालनमेव क्षत्रियाणाम अश्वमेधाख्यो यज्ञो भवति, नार्श्व हत्वा तदड्गानां होमकरणं चेति अर्थात् राष्ट्र का पालन करना ही क्षत्रियों का अश्वमेध यज्ञ है, घोड़े...