आध्यात्मिक प्रगति
संसार के सारे नशे कृत्रिमता की पराकाष्ठा हैं। यह मनुष्य के अनिवार्य आवश्यकता, साधारण आवश्यकता अथवा सौख्य आवश्यकता आदि किसी भी आवश्यकता में नहीं आते, किंतु मनुष्य को अपना विषयी बनाकर अनिवार्य आवश्यकताओं के भी आगे जा बैठते हैं। जहाँ आध्यात्मिक प्रगति के लिए मनुष्य हर प्रकार से निर्व्यसन एवं निर्विकार होना अनिवार्य है; वहाँ तंबाकू जैसा मादक पदार्थ मनुष्य को अनिवार्य रूप से शारीरिक, मानसिक तथा तथा बौद्धिक तीनों प्रकार से मंद एवं मलीन बनाता है।
All the intoxicants of the world are the culmination of artificiality. It does not come in any need of man's essential need, simple need or good need, but by making man his subject, he goes beyond the essential needs. Where for spiritual progress it is necessary for man to be free and free in every way; There, intoxicants like tobacco inevitably make a person slow and sluggish in all three ways, physically, mentally and intellectually.
Spiritual Progress | Akhil Bharat Arya Samaj, 8120018052 | Akhil Bharat Arya Samaj Vivah Vidhi | Inter Caste Marriage Promotion for Prevent of Untouchability | Pandits for Marriage | Akhil Bharat Arya Samaj Legal Wedding | Akhil Bharat Arya Samaj Marriage Rituals | Akhil Bharat Arya Samaj Wedding | Legal Marriage | Pandits for Pooja | Akhil Bharat Arya Samaj Mandir | Akhil Bharat Arya Samaj Marriage Rules | Akhil Bharat Arya Samaj Wedding Ceremony | Legal Marriage Help | Procedure of Akhil Bharat Arya Samaj Marriage | Akhil Bharat Arya Samaj Mandir Helpline | Arya Samaj Online | Akhil Bharat Arya Samaj Wedding Rituals | Legal Marriage Helpline | Procedure of Akhil Bharat Arya Samaj Wedding | Akhil Bharat Arya Samaj Mandir Marriage
भारत से समस्त विश्व में विद्या का प्रसार आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सत्यार्थप्रकाश में लिखते हैं कि यह निश्चय है कि जितनी विद्या और मत भूगोल में फैले हैं वे सब आर्यावर्त देश ही से प्रचारित हुए हैं। देखो! एक जैकालियट साहब पेरिस अर्थात फ्रांस देश के निवासी अपनी बाईबिल आफ इण्डिया में लिखते हैं कि सब विद्या...
अश्वमेध यज्ञ महर्षि दयानन्द अश्वमेध के मध्यकालीन रूप से सहमत नहीं थे और न इसे वेद व शतपथ ब्राह्मण के अनुकूल समझते थे। महर्षि ने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में राजप्रजाधर्म में लिखा है कि राष्ट्रपालनमेव क्षत्रियाणाम अश्वमेधाख्यो यज्ञो भवति, नार्श्व हत्वा तदड्गानां होमकरणं चेति अर्थात् राष्ट्र का पालन करना ही क्षत्रियों का अश्वमेध यज्ञ है, घोड़े...