सेवा-सहायता
धन-संपदा, अन्न, जल, वस्त्र और औषधि आदि से हम दूसरों की सेवा-सहायता का सकते हैं। हम भौतिक संसाधनों का दान कर किसी जरूरतमंद की सेवा, सहायता कर सकते हैं; उसे खुशियाँ दे सकते हैं। उसे प्रसन्नता प्रदान कर सकते हैं। जिस व्यक्ति को जिस समय, जिस वस्तु की आवश्यकता हो, उसे उस समय उसी वस्तु का दान कर, अर्पण कर हम उसकी तत्काल सेवा-सहायता कर सकते हैं। जैसे कोई भूखा हो तो उसे भोजनादि से तृप्त कर सकते हैं।
We can help others with wealth, food, water, clothes and medicine etc. We can help someone in need by donating material resources; can give him happiness. can make him happy. By donating the same thing to the person who needs the thing, at that time, we can do his immediate service-help. For example, if someone is hungry, he can be satisfied with food.
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भारत से समस्त विश्व में विद्या का प्रसार आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सत्यार्थप्रकाश में लिखते हैं कि यह निश्चय है कि जितनी विद्या और मत भूगोल में फैले हैं वे सब आर्यावर्त देश ही से प्रचारित हुए हैं। देखो! एक जैकालियट साहब पेरिस अर्थात फ्रांस देश के निवासी अपनी बाईबिल आफ इण्डिया में लिखते हैं कि सब विद्या...
अश्वमेध यज्ञ महर्षि दयानन्द अश्वमेध के मध्यकालीन रूप से सहमत नहीं थे और न इसे वेद व शतपथ ब्राह्मण के अनुकूल समझते थे। महर्षि ने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में राजप्रजाधर्म में लिखा है कि राष्ट्रपालनमेव क्षत्रियाणाम अश्वमेधाख्यो यज्ञो भवति, नार्श्व हत्वा तदड्गानां होमकरणं चेति अर्थात् राष्ट्र का पालन करना ही क्षत्रियों का अश्वमेध यज्ञ है, घोड़े...