प्रगतिशीलता
युवा पीढ़ी पारिवारिक भावनाओं के अभाव में लगातार भटकाव की ओर बढ़ चली है। परिवारों के टूटने की त्रासदी हर कोई झेल रहा है। परिवार तो समाज की प्रथम इकाई है। इकाई के टूटने पर समाज रूपी ढाँचे का बना रहना कैसे संभव है ? समाज की स्थिरता व प्रगतिशीलता तो परिवार पर ही टिकी है। इससे भी महत्वपूर्ण भूमिका है, व्यक्ति को शिक्षा एवं संस्कार देकर उसे नररत्न का रूप देने में। इसलिए जरूरी यही है कि बिना देर लगाए पारिवारिक मूल्यों की पुनर्स्थापना की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएँ।
The younger generation has constantly moved towards disorientation in the absence of family feelings. Everyone is facing the tragedy of breaking up of families. Family is the first unit of society. How is it possible for the structure of society to survive after the disintegration of the unit? The stability and progress of the society rests only on the family. There is an even more important role, by giving education and rites to the person, in giving him the form of Narratna. Therefore, it is necessary that without delay, concrete steps should be taken towards the restoration of family values.
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भारत से समस्त विश्व में विद्या का प्रसार आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सत्यार्थप्रकाश में लिखते हैं कि यह निश्चय है कि जितनी विद्या और मत भूगोल में फैले हैं वे सब आर्यावर्त देश ही से प्रचारित हुए हैं। देखो! एक जैकालियट साहब पेरिस अर्थात फ्रांस देश के निवासी अपनी बाईबिल आफ इण्डिया में लिखते हैं कि सब विद्या...
अश्वमेध यज्ञ महर्षि दयानन्द अश्वमेध के मध्यकालीन रूप से सहमत नहीं थे और न इसे वेद व शतपथ ब्राह्मण के अनुकूल समझते थे। महर्षि ने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में राजप्रजाधर्म में लिखा है कि राष्ट्रपालनमेव क्षत्रियाणाम अश्वमेधाख्यो यज्ञो भवति, नार्श्व हत्वा तदड्गानां होमकरणं चेति अर्थात् राष्ट्र का पालन करना ही क्षत्रियों का अश्वमेध यज्ञ है, घोड़े...