मनुष्य जीवन
इनसानी जिन्दगी में खाना, कमाना सोना, हँसाना, रोना जैसे क्रियाकलापों की हलचल मात्र जीवन नहीं है। शरीर और परिवार के दायरे तक वह सीमित नहीं है। जीवन की तह में अनेक प्रकार के सुख-दुःख, आनंद, इच्छाएँ, आकर्षण, विग्रह, उद्वेग, भ्रम भरे पड़े हैं। उसमें परस्पर विरोधी प्रचण्ड धाराएँ बहती हैं, जो एक-दूसरे से टकराती भी हैं और एक-दूसरे उदरस्थ भी करती हैं। विस्फोट, कम्पन और तूफान भी आते हैं और कई बार ऐसे अप्रत्याशित शक्तिचक्र तूफान उफन पड़ते हैं, जिनसे समूचा वातावरण प्रभावित होने लगता है। इस तरह इनसानी जीवन इतना सतही नहीं है, जितना की आमतौर पर समझ लिया जाता है।
In human life, life is not just the movement of activities like eating, earning, sleeping, laughing, crying. He is not limited to the realm of the body and the family. Many types of happiness-sorrow, joy, desires, attractions, idols, anxiety, illusions are filled in the bottom of life. Fierce currents flow in it, which collide with each other and also destroy each other. Explosions, vibrations and storms also occur and sometimes such unexpected power cycle storms erupt, which affect the entire environment. Thus human life is not so superficial as it is commonly understood.
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भारत से समस्त विश्व में विद्या का प्रसार आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सत्यार्थप्रकाश में लिखते हैं कि यह निश्चय है कि जितनी विद्या और मत भूगोल में फैले हैं वे सब आर्यावर्त देश ही से प्रचारित हुए हैं। देखो! एक जैकालियट साहब पेरिस अर्थात फ्रांस देश के निवासी अपनी बाईबिल आफ इण्डिया में लिखते हैं कि सब विद्या...
अश्वमेध यज्ञ महर्षि दयानन्द अश्वमेध के मध्यकालीन रूप से सहमत नहीं थे और न इसे वेद व शतपथ ब्राह्मण के अनुकूल समझते थे। महर्षि ने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में राजप्रजाधर्म में लिखा है कि राष्ट्रपालनमेव क्षत्रियाणाम अश्वमेधाख्यो यज्ञो भवति, नार्श्व हत्वा तदड्गानां होमकरणं चेति अर्थात् राष्ट्र का पालन करना ही क्षत्रियों का अश्वमेध यज्ञ है, घोड़े...