उत्पाद-संस्थाएं, विज्ञापन एजेंसियाँ और छायाकार आजकल पढी-लिखी परिपक्व और समझदार लड़कियों और लड़कों को शरीर का अश्लील प्रदर्शन करने के लिए बाध्य करते हैं तो वह सहर्ष इस कार्य को स्वीकार कर लेते हैं। क्योंकि उन पर पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव है। ये विज्ञापनकर्त्ता कुतर्क देते हैं कि आधुनिक युवा पीढी अनपढ, गंवार, मूर्ख और नादान नहीं है। आज के युवक-युवतियाँ अपना भला बुरा स्वयं समझते हैं। हम किसी पर जोर जबरदस्ती नहीं करते हैं। वे स्वेच्छा से कार्य करते हैं, शोषण जैसी कोई बात नहीं। कुल मिलाकर स्थिति यही है कि सब एक-दूसरे पर उंगली उठाते हैं। लेकिन सभी पैसे कमाने के स्वार्थ में अपनी-अपनी जिम्मेदारियों को एक-दूसरे पर थोंप रहे हैं। कोई भी इस फैलते प्रदूषण से मुक्त होने की बात गहराई से नहीं सोचता, सभी आंखे मूंदकर फूहड़ व्यवसायिकता की अंधी दौड़ में शामिल हैं। आप आंख झुकाकर कतराकर निकलना चाहें भी तो निकल नहीं सकते। आते-जाते उठते-बैठते हर कहीं किसी न किसी कार्यक्रम में महाबेतुके फिकरों, गीतों या अंग प्रदर्शन की कवायद चलती रहती है।
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