अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट द्वारा विवाह हेतु आवश्यक दस्तावेज एवं जानकारी
आर्यसमाज विवाह करने हेतु समस्त जानकारियां फोन द्वारा प्राप्त की जा सकती हैं। विवाह सम्बन्धी जानकारी या पूछताछ के लिए आप मो.- 8120018052 पर (समय - प्रातः 10 से - सायं 8 बजे तक) श्री देव शास्त्री से निसंकोच बात कर समस्त जानकारी प्राप्त कर सकते हैं तथा आपको जिस दिन विवाह करना हो उस मनचाहे दिन की बुकिंग आप फोन पर करा सकते हैं। फोन द्वारा बुकिंग करने के लिए वर-वधू का नाम पता और विवाह की निर्धारित तिथि बताना आवश्यक है।
आर्यसमाज विवाह आपके अपने स्थान पर
समस्त भारत में कहीं भी, कभी भी
अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट की अनूठी पहल
राष्ट्रीय एकता के लिये अश्पृश्यता निवारण एवं जातिभेद को समाप्त करके सामाजिक समरसता स्थापित करने के उद्देश्य से अन्तरजातीय विवाह करने के इच्छुक साहसी युवक-युवतियों की सुविधा, गोपनीयता एवं सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए "अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट" की All India Arya Samaj Marriage Helpline द्वारा आर्यसमाज विधि से विवाह संस्कार सम्पन्न करवाने हेतु भारत के सभी प्रान्तों के सभी जिलों, तहसीलों व नगरों में जहाँ हमारे अधिकृत केन्द्र नहीं हैं वहाँ भी वैदिक विद्वान आर्य पण्डित उपलब्ध कराए जाएंगे।
About Arya Samaj
Arya Samaj are Sanskrit words meaning ‘A Noble gathering.‘ The foundation of Arya Samaj is based exclusively on the Vedas, which states that God is an all-powerful and formless Supreme Being who is omniscient, omnipotent, and omnipresent.
धर्मपरायण
कुछ लोगों ने अपना यह व्यवसाय बनाया होता है कि वे स्वयं तो कोई अच्छा कार्य करते नहीं अन्य सत्कार्य करने वालों से द्वेष करते हैं और उनके मार्ग में विघ्न डालते हैं। वे चारों ओर द्वेष से ऐसे घिरे रहते हैं, मनो द्वेष की मूर्ति हों। उनके मन में दूसरों के दुर्विचार, दुर्भावनाएँ और दुश्चिंतन ही विद्यामन रहते हैं। वे यदि किस पुण्यात्मा को देखते हैं, तो मन में सोचते हैं कि यह पुण्यों की सीढ़ी से नीचे गिर जाये। यदि किसी धर्म-परायण व्यक्ति पर उनकी दृष्टि पड़ती है, तो वे चाहते हैं कि यह धर्मध्वंसी बन जाये। यदि किसी को दुःखियों की सहायता करता हुआ पाते हैं, तो वे प्रेरणा देते हैं कि उन्हें मरने दो, ये तो मरने के लिए ही पैदा हुए हैं।
अश्वमेध यज्ञ महर्षि दयानन्द अश्वमेध के मध्यकालीन रूप से सहमत नहीं थे और न इसे वेद व शतपथ ब्राह्मण के अनुकूल समझते थे। महर्षि ने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में राजप्रजाधर्म में लिखा है कि राष्ट्रपालनमेव क्षत्रियाणाम अश्वमेधाख्यो यज्ञो भवति, नार्श्व हत्वा तदड्गानां होमकरणं चेति अर्थात् राष्ट्र का पालन करना ही क्षत्रियों का अश्वमेध यज्ञ है, घोड़े...