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सर्वव्यापक
पशु-पक्षी अपनी-अपनी संतानों के प्रति अपने कर्तव्यबोध में आबद्ध देखे जाते हैं। प्रकृति में प्रत्येक जड़ पदार्थ भी अपने धर्म व कर्तव्य का पालन करता है जैसे अग्नि जलाने व प्रकाश करने, जल शीतलता प्रदान करने, वायु श्वसन-क्रिया में सहायक होने आदि कार्यों को करते व कर रहे हैं। ईश्वर सर्वव्यापक, सर्वज्ञ, दयालु, कृपालु सब जीवों का माता-पिता-आचार्य-राजा-न्यायधीश है। यदि माता-पिता-पशु-पक्षी अपने सन्तानों की रक्षा व पालन कर सकते हैं, तो फिर ईश्वर करे, यह सम्भव नहीं ही। माता-पिता आदि की तरह से ही ईश्वर भी सब जीवात्माओं की रक्षा व सुख देने के लिए सृष्टि बनाकर सबका पालन करता है, यह स्पष्ट होता है।

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  • अश्‍वमेध यज्ञ

    अश्‍वमेध यज्ञ महर्षि दयानन्द अश्‍वमेध के मध्यकालीन रूप से सहमत नहीं थे और न इसे वेद व शतपथ ब्राह्मण के अनुकूल समझते थे। महर्षि ने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में राजप्रजाधर्म में लिखा है कि राष्ट्रपालनमेव क्षत्रियाणाम अश्‍वमेधाख्यो यज्ञो भवति, नार्श्‍व हत्वा तदड्गानां होमकरणं चेति अर्थात् राष्ट्र का पालन करना ही क्षत्रियों का अश्‍वमेध यज्ञ है, घोड़े...

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