राम स्नेही
राम वहीँ प्रकट होते हैं, जहाँ यह द्वैत की दीवार मिट जाती है। उस क्षण जो सरित प्रवाह होता है, दोनों कुलों को स्पर्श करते हुए, वह है - राम स्नेही। वह कभी मरता नहीं, क्योंकि जो मर सकता था, वह सब मर गया। भक्त के पास अब विसर्जन के लिए कुछ नहीं है - न योग, न समाधि, न चमत्कार। वह बिलकुल खाली है। स्वयं को परमात्मा के चरणों में डाल दिया है; जीवित होते हुए भी महामृत्यु स्वीकार लेता है। जिसका अहंकार, मानपमान, पद, प्रतिष्ठा, गौरव, कामना, यश, सुख, दुःख सब कुछ मर चूका है, वहाँ अब मरने को शेष क्या है ?
Rama appears only where this wall of duality vanishes. The stream that flows at that moment, touching both the clans, is Ram Snehi. He never dies, because everything that could die has died. The devotee now has nothing to immerse himself in – neither yoga, nor samadhi, nor miracles. It is completely empty. I have put myself at the feet of God; Even while alive, he accepts great death. Whose ego, respect, position, reputation, pride, desire, fame, happiness, sorrow everything has died, what is left to die there now?
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भारत से समस्त विश्व में विद्या का प्रसार आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सत्यार्थप्रकाश में लिखते हैं कि यह निश्चय है कि जितनी विद्या और मत भूगोल में फैले हैं वे सब आर्यावर्त देश ही से प्रचारित हुए हैं। देखो! एक जैकालियट साहब पेरिस अर्थात फ्रांस देश के निवासी अपनी बाईबिल आफ इण्डिया में लिखते हैं कि सब विद्या...
अश्वमेध यज्ञ महर्षि दयानन्द अश्वमेध के मध्यकालीन रूप से सहमत नहीं थे और न इसे वेद व शतपथ ब्राह्मण के अनुकूल समझते थे। महर्षि ने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में राजप्रजाधर्म में लिखा है कि राष्ट्रपालनमेव क्षत्रियाणाम अश्वमेधाख्यो यज्ञो भवति, नार्श्व हत्वा तदड्गानां होमकरणं चेति अर्थात् राष्ट्र का पालन करना ही क्षत्रियों का अश्वमेध यज्ञ है, घोड़े...