भगवान महावीर
अविवेक से कहने या बोलने से निकले शब्द एक जहरीले काँटे की भांति होते हैं, भगवान महावीर ने कहा भी है वचन रूपी इस जहरीले काँटे को जीभ बोलती है तो कान सुनते हैं और वे मन में चुभते हैं, यह काँटा जन्म-जन्म तक पीड़ा देता है। तीखा घाव भर जाता है पर यह घाव नहीं भरता। मानव ने जब भी जबान से कड़वे वाक्य या शब्द कहे हैं तब काँटे ही काँटें बिछे हैं और उनका भयंकर परिणाम हुआ है। अतएव सदैव ऐसी वाणी, ऐसे शब्द बोले जिनमें माधुर्य हो, ओज भी भी हो, मोम जैसी स्निग्धा भी हो।
The words that come out of saying or speaking indiscriminately are like a poisonous thorn, Lord Mahavir has also said that when the tongue speaks this poisonous thorn in the form of words, the ears listen and they prick the mind, this thorn hurts for birth after birth. Is. A sharp wound heals but this wound does not heal. Whenever man has uttered bitter sentences or words from his tongue, then only thorns have been spread and their consequences have been dire. That's why always speak such a speech, such words which have sweetness, ooze as well, and snigdha like wax.
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भारत से समस्त विश्व में विद्या का प्रसार आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सत्यार्थप्रकाश में लिखते हैं कि यह निश्चय है कि जितनी विद्या और मत भूगोल में फैले हैं वे सब आर्यावर्त देश ही से प्रचारित हुए हैं। देखो! एक जैकालियट साहब पेरिस अर्थात फ्रांस देश के निवासी अपनी बाईबिल आफ इण्डिया में लिखते हैं कि सब विद्या...
अश्वमेध यज्ञ महर्षि दयानन्द अश्वमेध के मध्यकालीन रूप से सहमत नहीं थे और न इसे वेद व शतपथ ब्राह्मण के अनुकूल समझते थे। महर्षि ने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में राजप्रजाधर्म में लिखा है कि राष्ट्रपालनमेव क्षत्रियाणाम अश्वमेधाख्यो यज्ञो भवति, नार्श्व हत्वा तदड्गानां होमकरणं चेति अर्थात् राष्ट्र का पालन करना ही क्षत्रियों का अश्वमेध यज्ञ है, घोड़े...