जगदगुरु महर्षि दयानन्द
आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सरस्वती अत्यधिक प्रतिभावान व योग्य ऋषि थे। उन्होंने संसार को धार्मिक विषयों सहित सभी प्रकार का सत्य ज्ञान दिया। ज्ञान व विद्या में पराकाष्ठा व उसका लाभ संसार के अधिक से अधिक लोगों में निःस्वार्थ भाव से वितरित करने वाले को गुरु कहते हैं। अज्ञानी, अल्पज्ञान व जिसकी बातें व विचार तथा सिद्धान्त भ्रान्तिपूर्ण हों वह विश्वगुरु तो क्या एक साधारण गुरु भी नहीं कहा जा सकता है।
महाभारत काल के बाद के पांच हजार वर्षों में जगदगुरु आदि शंकराचार्य के पश्चात् ऐसा कोई विद्वान नहीं हुआ जिसकी तुलना महर्षि दयानन्द से की जा सके, जिसने उनकी तरह से वेदों के सत्य अर्थ को जान करके उसको अधिकतम लोगों तक पहुँचाने का पुरजोर प्रयास किया हो। महर्षि दयानन्द जी का एक गुण और है, जो उनके समकालीन एवं बाद के महापुरुषों सहित धार्मिक विद्वानों व धर्मगुरुओं में नहीं पाया जाता है। वह उनका बाल ब्रह्मचारी होने के साथ सिद्ध योगी होना भी है। इन सब व अन्य अनेक गुणों के कारण वह संसार के सर्वश्रेष्ठ मानव व सर्वोच्च विश्वगुरु सिद्ध होते हैं।
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